Friday, June 28, 2019

क्या स्मार्टफ़ोन से इंसानी शरीर कमज़ोर हो रहा है?

नए दौर का रहन-सहन सिर्फ़ हमारी ज़िंदगी पर कई तरह से असर नहीं डाल रहा.
बल्कि ये हमारे शरीर की बनावट में भी बदलाव ला रहा है.
नई रिसर्च बताती है कि बहुत से लोगों की खोपड़ी के पिछले हिस्से में एक कीलनुमा उभार पैदा हो रहा है और कुहनी की हड्डी कमज़ोर हो रही है. शरीर की हड्डियों में ये बदलाव चौंकाने वाले हैं.
हर इंसान के शरीर का ढांचा उसके डीएनए के मुताबिक़ तैयार होता है. लेकिन, जीवन जीने के तरीक़े के साथ-साथ उसमें बदलाव भी होने लगते हैं.
शोधकर्ता हड्डियों की बायोग्राफ़ी को ऑस्टियो बायोग्राफ़ी कहते हैं. इसमें हड्डियों के ढांचे को देखकर पता लगाने की कोशिश की जाती है कि उस शरीर का मालिक किस तरह की ज़िंदगी जीता था.
वो कैसे चलता, बैठता और लेटता और खड़ा होता था.
ये इस मान्यता पर आधारित है कि हम जैसी लाइफ़-स्टाइल अपनाते हैं, शरीर उसी तरह आकार लेने लगता है.
मिसाल के लिए आज हम लैपटॉप, कंप्यूटर, मोबाइल पर ज़्यादा वक़्त देते हैं. मतलब हमारी कुहनियां ज़्यादा समय तक मुड़ी रहती हैं.
इसका असर उनकी बनावट पर पड़ने लगा है. इसकी मिसाल हमें जर्मनी में देखने को मिलती है.
रिसर्च में पाया गया है कि यहां के नौजवानों की कुहनियां पहले के मुक़ाबले पतली होने लगी हैं. इससे साफ़ ज़ाहिर है कि नई जीवनशैली हमारे शरीर की बनावट खासतौर से हड्डियों पर अपना असर डाल रही है.
साल 1924 में मारियाना और गुआम द्वीप में खुदाई के दौरान विशालकाय आदमियों के कंकाल मिले थे. ये कंकाल सोलहवीं और सत्रहवीं सदी के बताए जाते हैं.
इनमें खोपड़ी, बांह की हड्डी, हंसली (कंधे की हड्डी का एक भाग) और टांगों के निचले हिस्से की हड्डियां काफ़ी मज़बूत हैं.
इससे पता चलता है कि उस दौर में यहां के लोगों आज के इंसान से अलग थे.
इस द्वीप की पौराणिक कहानियों में ताऊ ताऊ ताग्गा का ज़िक्र मिलता है. वो बेपनाह जिस्मानी ताक़त वाला पौराणिक किरदार था. लेकिन सवाल है कि आख़िर वो इतने ताक़तवर क्यों था?
दरअसल जिस इलाक़े में ये कंकाल पाए गए थे, वहां लोग पत्थरों का काम करते थे.
बड़ी-बड़ी चट्टानों को तोड़कर अपने घर बनाते थे. इस द्वीप के सबसे बड़े घर में 16 फुट के खंभे लगे थे, जिनका वज़न 13 टन होता था.
उस दौर में आज की तरह की मशीनें नहीं थीं. इसलिए यहां के लोगों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी. इस ज़रूरत के लिहाज़ से ही उनके शरीर की हड्डियां भी मज़बूत होती गईं.
अगर उस दौर की तुलना 2019 की मॉडर्न ज़िंदगी से की जाए तो हमारा शरीर बहुत कमज़ोर है. ये जीने के नए अंदाज़ का नतीजा है. आज हर कोई गर्दन झुकाए मोबाइल की स्क्रीन को ताकते हुए नज़र आता है.
ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक डेविड शाहर इंसान के शरीर में आ रही बनावट पर पिछले बीस साल से रिसर्च कर रहे हैं.
पिछले एक दशक में उन्होंने पाया है कि मरीज़ों की खोपड़ी में एक कील के आकार वाली हड्डी पनप रही है.
इसे साइंस की भाषा में एक्सटर्नल ऑक्सीपीटल प्रोट्यूबरेंस कहते हैं. ये खोपड़ी के निचले हिस्से में गर्दन से ठीक ऊपर होती है. सिर पर हाथ फेरने से इसे महसूस किया जा सकता है. अगर सिर पर बाल ना हों तो ये यूं भी साफ़ तौर पर नज़र आ जाती है.
हाल के दशक से पहले इंसानी खोपड़ी में कीलनुमा ये हड्डी किसी-किसी में पाई जाती थी. सबसे पहले ये 1885 में पाई गई थी. उस वक़्त फ्रांस के मशहूर वैज्ञानिक पॉल ब्रोका के लिए भी ये एक नई खोज थी. क्योंकि वो बहुत तरह की प्रजातियों पर रिसर्च कर चुके थे. उन्हें किसी में भी इस तरह की हड्डी नहीं मिली थी..
डेविड शाहर ने 18 से 86 वर्ष के क़रीब एक हज़ार लोगों की खोपड़ी के एक्स-रे पर रिसर्च की. उन्होंने पाया कि 18 से 30 वर्ष की उम्र वालों की खोपड़ी में कीलनुमा हड्डी या स्पाइक ज़्यादा थी.
शाहर के मुताबिक़ इसकी वजह गैजेट्स और स्मार्ट फ़ोन का इस्तेमाल है. जब हम किसी गैजेट पर नज़र जमाकर काम करते हैं तो गर्दन नीचे की तरफ़ झुक जाती है. जिसकी वजह से गर्दन की मांसपेशियों पर ज़ोर पड़ता है और दर्द बैलेंस करने के लिए एक नई तरह की हड्डी पैदा हो जाती है.
शाहर का कहना है कि कूबड़ अंदाज़ में बैठने की वजह से खोपड़ी में इस तरह की हड्डी पनप रही है. गैजेट्स के वजूद में आने से पहले अमरीका में औसतन हर कोई लगभग दो घंटे किताब पढ़ने में बिताता था लेकिन आज उसका दोगुना समय लोग अपने फ़ोन और सोशल मीडिया पर बिताते हैं.
स्पाइक के संदर्भ में सबसे हालिया रिसर्च 2012 में भारत की ऑस्टियोलॉजिकल लैब में हुई है. इस लैब में सिर्फ़ हड्डियों पर रिसर्च होती है.
यहां की रिसर्च में स्पाइक की लंबाई महज़ 8 मिलीमीटर है जबकि शाहर की रिसर्च में इसकी लंबाई 30 मिलीमीटर तक पायी गई है. शाहर के मुताबिक़ खोपड़ी में उठने वाला ये कूबड़ कभी जाने वाला नहीं है. बल्कि ये बढ़ता ही चला जाएगा. लेकिन इससे कोई और परेशानी भी नहीं होगी.

Monday, June 24, 2019

ديلي تلغراف: خطة كوشنر للشرق الأوسط تنهار قبل أن تبدأ

نشرت صحيفة ديلي تلغراف مقالا تحليليا كتبه، رفائيل سانتشيز، في القدس يقول فيه أن خطة، جاريد كوشنر، للسلام في الشرق الأوسط انهارت قبل أن تبدأ.
يقول إن مؤتمر البحرين سيفتتح بعرض شريط فيديو بعنوان "تخيل منطقة الشرق الأوسط مزدهرة"، بهدف إقناع الجمهور بخطة جاريد كوشنر التي طال انتظارها.
ولكن المشكلة هي أن المؤتمر لن يحضره الفلسطينيون ولا الإسرائيليون وهما طرفا النزاع الذي صممت الخطة لحله.
ويضيف الكاتب أن جهود السلام الأمريكية بدأت تنهار قبل أن تبدأ، فلم يعد يثق في إمكانية نجاحها إلا قليل من الناس.
وبادرت السلطة الفلسطينية بانتقاد الخطة، التي يعتقد ان تجمع 50 مليار دولار لتوفير فرص الاستثمار في الأراضي الفلسطينية ودول الجوار بما فيها لبنان والأردن ومصر.
ورفض الفلسطينيون الذهاب إلى البحرين لحضور افتتاح المؤتمر الاقتصادي. ويبدو أن إسرائيل انتظرت توجيه الدعوة لها، ولكن ذلك لم يحدث.
وسيحضر المؤتمر في البحرين جنرال إسرائيلي سابق وصحفيون إسرائيليون. وهذا إنجاز وإن كان صغيرا، حسب رفائيل، لأن البحرين ليس لها علاقات دبلوماسية مع إسرائيل.
وعبرت دول عربية عن انزعاجها من حضور مؤتمر مع إسرائيليين دون فلسطينيين.
ونقل الكاتب تصريح خبير استطلاعات الرأي، خليل شكاكي، الذي يرى أن الرأي العام الفلسطيني يشكك في إدارة ترامب منذ البداية، وازدادت مواقفه رفضا لجهود السلام الأمريكية بمرور الوقت.
وتبين استطلاعات الرأي ايضا أن 80 في المئة من الفلسطينيين يؤيدون السلطة في رفض خطة السلام الأمريكية دون أن يروها، فهم يعتقدون مسبقا أنها في صالح إسرائيل مهما كانت تفاصيلها.
وحتى إن استجابت الخطة لمطالبهم فإن الأغلبية يرون أنه ينبغي رفضها لاعتقادهم أن شيئا يُمنح للفلسطينيين من قبل إدارة ترامب لابد أن فيه خدعة.
ويقول إدوارد إن العالم يشهد تراجعا تدريجيا في الديمقراطية، ويظهر ذلك في صعود الدعم لأنظمة الحكم الاستبدادية عبر العالم بما فيها الدول الغربية، إذ أن 18 في المئة من الأمريكيين يؤيدون حكما عسكريا اليوم مقارنة بنسبة 8 في المئة عام 1995.
كما تبين استطلاعات الرأي تزايد فقدان الثقة في المؤسسات العامة. وصعود التيارات المتطرفة في الانتخابات، في أغلب الدول الديمقراطية. ولعل أكثر الاحصائيات إثارة هي أن 62 في المئة من الدول التي يزيد عدد سكانها عن مليون نسمة كانت ديمقراطية في بداية القرت ولكن هذه النسبة انخفضت اليوم إلى 51 في المئة.
ويصف ديموند هذه التحولات "الكساد الديمقراطي". فهو يرى أن دولا مثل تركيا بقيادة رجب طيب أردوغان والمجر بقيادة فيكتور أوربان تخلت تدريجيا عن ضوابط الرقابة والتوازن التي هي أساس الديمقراطية الليبرالية، حتى فقدت ملامح الدول الديمقراطية.
فمؤلف الكتاب يرى أن الولايات المتحدة تواجه خطرا خارجيا من روسيا والصين خاصة ومن التآكل داخليا. وروسيا تستغل انفتاح الدول الغربية فهناك شركات محاماة ومستثمرون في الترقية العقارية في لندن أو نيويورك يساعدون صراحة في غسيل الأمول الروسية.
ويقول إدوراد إن من أسباب استهانة الرئيس الروسي، فلاديمير بوتين، بقوة الدول الغربية هي أن الكثيرين من نخبتها تم شراؤهم.
ويضيف أن خطر الصين أكبر على الديمقراطية الغربية. فهي تنفق 10 مليارات دولار سنويا على الدعاية في الخارج أي خمسة أضعاف ما تنفقه الولايات المتحدة لنشر الديمقراطية وحقوق الإنسان.
ويبلغ حجم المساعدات الدولية التي تمنحها الصين في العالم 38 مليار دولار، وهي أكبر ميزانية مساعدات في العالم. فهناك 525 معهد كونفوشيوس اليوم في مختلف قارات العالم.
ونشرت صحيفة التايمز مقالا افتتاحيا تتحدث فيه عن المواجهة بين إيران والولايات المتحدة وسط تصاعد التوتر بينهما.
وتقول التايمز إنه على الدول الأوروبية أن تساند الولايات المتحدة في المواجهة مع إيران على الرغم من قرارات ترامب المضطربة.
وتضيف أن سياسة الضغوط التي تمارسها الولايات المتحدة ضد الأنظمة المارقة لم تعد فعالة. فقد نجح هذا الأسلوب في جلب زعيم كوريا الشمالية، كيم جونغ أون، إلى طاولة المفاوضات، ولكن يبدو أنه لا ينفع مع إيران.
وترى التايمز تناقضا بين مواقف المستشارين المؤيدة لاستعمال القوة وتردد الرئيس في خوض الحرب التي تعهد بعدم خوضها. والنتيجة هي عدم انسجام استراتيجي، بدليل أن الولايات المتحدة ليس لها وزير للدفاع منذ بداية عام 2019.
وتضيف الصحيفة أن إيران تستغل هذا الوضع المشوش. فقد أعلنت إنها سترفع درجة تخصيب اليورانيوم، فوق الحد المنصوص عليه في الاتفاق النووي المبرم مع القوى العظمى عام 2015. وأسقطت طائرة استطلاع أمريكية. والمرجح أنها هي التي نفذت الهجمات على ناقلات النفط في مضيق هرمز.
وتقول الصحيفة إن هذه التحركات لا ينبغي أن ينظر إليها على أنها إعلان حرب، بل إنها محاولة لإقناع الدول الأوروبية بالابتعاد عن الولايات المتحدة وسياستها. فطهران تعتقد، حسب التايمز، أنها تستطيع بهذا التصعيد المتهور أن تعزل ترامب وتضعف العقوبات الاقتصادية الغربية التي تثقل كاهل اقتصادها.
وترى التايمز أن الأولوية لابد أن تكون للتخفيف من التوتر في الخليج لأن الولايات المتحدة لها من القوة ما يمكن ان تدمر به البحرية الإيرانية، وأي مواجهة من هذا القبيل ستدخل المنطقة في سنوات من الاضطرابات.
وقد اقتنع ترامب بذلك عندما ألغى قرار ضرب إيران لأنه كان غير صائب، على الرغم من أن مستشاره للأمن القومي، جون بولتون، نبه الإيرانيين إلى عدم الخلط بين التعقل والضعف.
وتدعو الصحيفة الدول الأوروبية الموقعة على الاتفاق النووي، وهي بريطانيا وفرنسا وألمانيا، إلى عدم قبول مناورات إيران وهي تزرع الاضطرابات في لبنان وسوريا والعراق، وتدعم تمرد الحوثيين في اليمن. فطهران فهمت أن الاتفاق النووي لعام 2015 هو ترخيص لها لتكون عامل فوضى في الشرق الأوسط، دون الخوف من الدول الغربية.

Thursday, June 13, 2019

解振华:“我们不会改主意,也不重新谈判”

9月9日,国际气候会谈在曼谷落下帷幕,未能就《巴黎协定》的实施细则取得实质性进展。一周后,中国气候变化首席代表解振华重申了各国在2018年12月最后期限之前敲定细则的承诺。

中国气候变化事务特别代表解振华上周在旧金山举行的全球气候行动峰会上告诉记者,各国已经达成共识,对2015年巴黎会谈上达成的气候目标“不会改主意,不会重新谈判”。

“大多数国家——除了极少数——都表现出了灵活性和强烈的政治意愿,”解振华说。“我们一致同意,我们只能从《巴黎协定》出发向前走,不会倒退,不会重新考虑已经达成共识的问题,”他补充道。

9月4至9日,联合国气候会谈在泰国曼谷举行,与会的发展中国家和发达国家就各国设定国家温室气体减排目标的雄心持不同意见

中国和其他发展中国家一起,要求谈判文本允许一些国家作出自愿而非强制性的承诺。这遭到了以美国为首、包括加拿大和澳大利亚在内的“伞形集团”的反对。

解振华没有指名道姓,只表示曼谷气候会谈期间,某些国家不顾全球去碳化这一“不可逆转的趋势”,立场“令人失望”。

解振华暗指的可能是特朗普政府,特朗普政府计划美国在2020年正式退出《气候协定》,并一直试图为国内日渐消沉的煤炭行业提供补贴,以及下调车辆排放标准。

尽管陷入僵局,解振华确信合作终将取得胜利。各国已经缩小分歧,并将谈判文件的篇幅缩减至约250页,以简化这一过程

揭开旧伤疤

布鲁金斯学会资深研究员、2016年以前一直担任奥巴马政府气候特使的托德·斯特恩说,特朗普政府在全球气候谈判中缺乏政治参与,“让事情变得非常困难”。

斯特恩说,奥巴马政府曾经展现出的协调全球最大的两个碳污染国之间分歧的善意如今消失殆尽。

“我所说的我们曾经合作良好,并不意味着这个过程中没有冲突和争辩,也不意味着意见完全一致…我们知道大家都试图以一种不会越过红线的方式共同努力。”斯特恩说。

“最终——也许会花上很长时间——我们会找到办法的,”他还说。

能源基金会北京办事处总裁邹骥也认为,特朗普政府对气候谈判不合作的态度,让美国成为国际谈判的“负担”。

”美国不合作,还提一大堆要求,”他说。

斯特恩说,他如果参加曼谷谈判,也会反对发展中国家和发达国家采取不同规则的议案

”这恰恰越过了红线,”他说,“这么做就是重新协商巴黎峰会已经确定的问题。”

2018年12月,《联合国气候变化框架公约》第二十四次缔约方会议将在波兰卡托维兹举行。斯特恩说,在这一最后期限之前,各国还有足够时间来克服这一症结。

解振华认为,谈判进行到现阶段,各国提出“高要求”是正常的。他还说,谈判不是一场零和博弈,每个国家最终必须做出妥协。

“我们的目标是保护人类共同的未来,”他说,“然后守住各(成员)国的利益和红线。”